Thursday, August 30, 2007

ब्रजेश्‍वर मदान की कविताएं

लिखना कब शुरू हुआ आपका, यह लेखकों और कवियों से पूछा जानेवाला एक आम सवाल है। कुछ कवि इसे बड़ी नफासत से कहते हैं - हम लिखते नहीं कविताएं हममें अभिव्‍यक्‍त होती हैं। हम तो निमित्‍त मात्र हैं। किसी कवि के जरिए कब उसकी श्रेष्‍ठ कविता अभिव्‍यक्‍त होती है यह अंदाज लगाना मुश्किल है। पिछले कुछ समय से ब्रजेश्‍वर जी बड़ी ही खुबसूरत कविताएं लिख रहे हैं, बिल्‍कुल नए अंदाज में। पहले हंस में और फिर राष्‍ट्रीय सहारा के इतवारी परिशिष्ट में उनकी कविताएं साया हुई हैं। प्रस्‍तुत हैं बीते इतवार को राष्‍ट्रीय सहारा में आईं कुछ कविताएं

गोलक

पाब्‍लो नेरूदा की कविता में
गोलक जैसे वक्ष पढ्कर
गोलक का नया अर्थ जाना
गोलक जो बचपन में
होता था हमारा बैंक
डालते थे उसमें
अठन्नियां चवन्नियां
जो भी जेबखर्च मिलता था
उससे बचाकर और इंतजार करते थे
उसके भरने का

नेरूदा की कविता से यह
नया अर्थ जाना
कि जहां सुनी जा सकती थी
दिल की धड़कन
उसमें करके सुराख
सुनते रहे सिक्‍कों की आवाज
यों सोचकर
याद आई देह और धरती की गंध
याद आया गांव
जहां मिटटी के दीयों में
फूलती थी सरसों
अब तो इस शहर में
हो गए हैं बरसों
जहां सिक्‍कों के शोर में
खो गई है जीवन की भोर । ।

एक बार

एक लड़की मिलती है एक दिन
एक लड्के से और
करने लगती है प्रेम
और फिर एक दिन
चली जाती है
उसे टूटे हुए जहाज के
डेक पर छोड्कर
फिर उसकी जिंदगी में
वह सब होता है
जो होता सबकी जिंदगी में
शादी, बेटे-बेटियां
पोते-पोतियां भी
लेकिन नहीं होता प्रेम
और मरते दम तक वह
किसी को पता नहीं चलने देती
कि जीवन एक बार उसने भी जिया था ।

अहिल्‍या

वह मेरा भ्रम था कि
फर्श पर पड़ी गठरी
बदल गई लड़की में
दरअसल
वह लड्की थी
जो इफ्तार से पहले की
नमाज अदा करके उठी थी
फर्श से।
भ्रम था मेरा
लेकिन मैं उस पर
यकीन करना चाहते था कि
अब भी बदल सकता है
कोई पेड्, कोई पत्‍थर
किसी औरत में
जैसे अहिल्‍या बदल गई थी
पत्‍थर से और में
एक स्‍पर्श से।।

1 comment:

  1. आभार इस प्रस्तुति के लिये.

    ReplyDelete