Monday, November 17, 2008

बच्‍चों के बारे में

बच्‍चों के बारे में
बनाई गईं ढेर सारी योजनाएं
ढेर सारी कविताएं
लिखी गईं बच्‍चों के बारे में

बच्‍चों के लिए
खोले गए ढेर सारे स्‍कूल
ढेर सारी किताबें
बांटी गईं बच्‍चों के लिए

बच्‍चे बड़े हुए
जहां थे
वहां से उठ खड़े हुए

बच्‍चों में से कुछ बच्‍चे
हुए बनिया हाकिम
और दलाल
हुए मालामाल और खुशहाल

बाकी बच्‍चों ने सड़क पर कंकड़ कूटा
दुकानों में प्‍यालियां धोईं
साफ किया टट्टीघर
खाए तमाचे
बाज़ार में बिके कौडि़यों के मोल
गटर में गिर पड़े

बच्‍चों में से कुछ बच्‍चों ने
आगे चलकर
फिर बनाईं योजनाएं
बच्‍चों के बारे में
कविताएं लिखीं
स्‍कूल खोले
किताबें बांटीं
बच्‍चों के लिए
गोरख पांडेय
यह कविता हाल ही में बाल विज्ञान पत्रिका चकमक के नवंबर अंक के कवर पेज पर प्रकाशित हुई है।

3 comments:

  1. बाकी बच्‍चों ने सड़क पर कंकड़ कूटा
    दुकानों में प्‍यालियां धोईं
    साफ किया टट्टीघर
    खाए तमाचे
    बाज़ार में बिके कौडि़यों के मोल
    गटर में गिर पड़े
    " kaveeta mey sachaee to hai, fir bhee ye panktiyan pdh kr bdaa hee dukh hua.....kash ye bacche bhe dusron baccon ke treh.........."

    regards

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  2. अच्छी कविता चुनी आपने... ये सिलसिला तो बदस्तूर जारी है और रहेगा...

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