Sunday, September 23, 2007

असाइनमेंट उर्फ सत्रीय कार्य

स्‍कूल में हम सबने गृहकार्य किया है। उसके लिए शाबाशी और पिटाई दोनो हम सबने पाई होगी। पत्रकारिता करना शुरू किया तो असाइंनमेंट पद से परिचय हुआ। बहुत दिन तक इस शब्‍द का अर्थ डिक्‍शनरी से पूछने की जरूरत नहीं पड़ी। क्‍योंकि पढ़ाई लिखाई की दुनिया में यह एक आम पद है। लेकिन इस बार कक्षा में एक बच्‍चे ने टोक दिया : क्‍या अर्थ है सर इसका। और टोक ही नहीं दिया बल्कि वह तो भड़क उठा कि यह क्‍या बात है हिन्‍दी की कक्षा में अंग्रेजी के पद चल रहे हैं। खुशी इस बात की थी कि उसे इस पद का प्रचलित अर्थ मालूम था, उसने गर्व से हमें बताया : सत्रीय कार्य। और तब से अब सत्रीय कार्य इस तरह से जबान पर चढ़ा हुआ है कि शायद कभी असाइनमेंट बोलने की जरूरत न पड़े। हालांकि, इस पद में मीडिया के असाइनमेंटवाली बात कुछ फिट नहीं जान पड़ती लेकिन कक्षा के काम के लिए यह कोई खराब शब्‍द नहीं है।
परीक्षा की तरह यह गृहकार्य उर्फ सत्रीय कार्य भी विद्यार्थियों में एक तरह का भय पैदा करता है। किसी गतिविधि को यह नाम दे देने मात्र से उनमें झिझक पैदा हो जाती है, इसे स्‍पष्‍ट रूप से महसूस किया जा सकता है। अगर यह भय न दिखाएं कि कक्षा में आपके काम पर अंक मिलेंगे या कटेंगे तो शायद ही कोई काम करे। लेकिन ऐसे मरे मन से कोई काम करने का क्‍या मतलब। होना यह चाहिए कि बच्‍चे स्वत: कक्षा संबंधित गतिविधियों में भागीदारी करें। अगर वे कक्षा में दिए जानेवाले काम में जोश से नहीं लग रहे हैं तो उसका सिर्फ यही अर्थ नहीं है कि वह नहीं करना चाहते या फिर उन्‍हें करना नहीं आ रहा। बल्कि यह भी हो सकता है कि वह काम इतना उबाऊ है कि इसमें उनका मन नहीं लग रहा।
यह सब विषय विषय पर भी निर्भर है। शायद उन्‍हें कैमरा पकड़ा दिया जाए तो वे खुशी-खुशी इसमें लग जायेगे। इतिहास की कक्षा तो कुछ खास ही उबाऊ हो जाती है। कानपुर के एक महाविद्यालय की मोहतरमा पिछले दिनों पधारीं तो चर्चा में इतिहास की बात बरबस छलक पड़ी। कुछ टिप्‍स बताइए इतिहास की कक्षा को कैसे रोचक बनाया जाए। बाकी सब मे तो काम चल जाता है लेकिन इतिहास में कुछ नहीं सूझता। ऐसा नहीं है कि इतिहास पढ़ानेवाले सभी शिक्षक उबाते ही होंगे। काफी कुद शिक्षक पर निर्भर करने लगता है कि वह अपने विषय को कैसे प्रस्‍तुत करता है।
लेकिन कक्षाओं में पठन-पाठन में आनेवाली दिक्‍कतों को साझा करने का कोई फोरम तो है नहीं। हां, अंग्रेजी में ये फोरम हैं लेकिन उनमें से अधिकांश का अनुभव वहां के माहौल से संबंधित है जाहिर है सिर्फ उनके तर्जुमा से यहां की कक्षाओं में काम नहीं चलेगा। संभवत: बाकी अनुशासनों में ऐसे साझा मंच हों लेकिन पत्रकारिता में इन अनुभवों का एक जगह आना अभी बाकी है।

3 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुतिकरण अपनी पत्रकारिता के अनुभव का.
    यही लगा..बधाई.

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  2. मुझे लगता है कि सत्रीय कार्य और गृह कार्य जैसी अनूदित अभिव्यक्तियों में फंसना चाहिए। जो शब्द सहजता से आ जा रहे हैं, उनको क्यों रोकना। बाकी पठन-पाठन का तो सारा तरीका ही अपने यहां नीरस है। जब इतिहास उबाऊ तरीके से पढ़ाया जाता है तो बाकी विषयों की क्या बात की जाए।

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  3. sir, m apka student rha hun to m samajh sakta ubaupan ki is samasya ko. lekin m manne ko tyar nhi ki history boring h.agar class me hi baithe baithe pothiyan padhni paden to history boring zarur ho jati h. lekin aap ne class me jo presentaion karne ko di thi or us presentaion k liye m jo padha tha vo sab mujhe aaj bhi yad h. kyon na isi tarah kuch creative tarike nikale jaen padhane k..... jaise k kyon na koi chapter aisa ho jise student pdhayen...

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