Friday, July 25, 2008

कुआं

कभी कभी लगता है कि इस तरह की कविता का क्‍या मतलब है। लेकिन कविताएं हैं कि बस मतलब से ही नहीं आतीं। वे अपने साथ आपके अनुभव को बड़ा करती हैं। बीज का अंकुरण आपने देखा होगा। उसके लिए एक शब्‍द है 'अंखुआना', संभवत: यह अंकुरण का अपभ्रंश है। अनुभव की प्रक्रिया भी अंखुआने से होती है और इस दौर में कई तरह की अनुभूतियों से हम गुजरते हैं।

कुआं

हर बार
आई है प्‍यास तुम तक
प्‍यासी ही लौट गई है
सोचकर,
कि तुम्‍हारा पानी न कम हो
जगत पर उगी दूब न कुचले
प्‍यास आई है
प्‍यासी ही लौट गयी है
- निशांत, 1992-93, वाराणसी

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