Sunday, October 31, 2010

कैसे पलटेगी यह आंधी

इस तरह शहर फैल रहा है। किराएदारों के घर बन रहे हैं। और घरवाले दनादन दूसरे घरों में निवेश कर रहे हैं। भोपाल से नया भोपाल और अब नए भोपाल का विस्‍तार आस पास की हरियाली, को रौंदता हुआ चारों दिशाओं में फैल रहा है। खेतों में रोड़े डाले जा रहे हैं । देश दिल्‍ली, मुंबई की तरफ दौड़ रहा रहा है और प्रदेश भोपाल की तरफ ..... कैसे पलटेगी यह आंधी ?

Saturday, October 30, 2010

सादे पन्‍ने

डायरी के पन्‍ने पलटने आश्‍चर्य होता है। कुछ पन्‍ने सादे हैं और कुछ पर गोदी गई है स्‍मृतियों की छाप। जहां कलम चली है लगता है समय जिंदा है। बाकी की तारीखें क्‍या खाली निकल गई हैं ? सादे पन्‍नों में क्‍या है ? क्‍या वे कबीर की चादर हैं - ज्‍यों की त्‍यों धर दीनी चदरिया। सच में या वे कबीर को पढ़ कर किये गए स्‍वांग हैं। क्‍या समय सचमुच इतना साफ और सुच्‍चा है। या किसी आतंक, भय, उलझन में बुझी हुई आवाज है इनमें.........