डायरी के पन्ने पलटने आश्चर्य होता है। कुछ पन्ने सादे हैं और कुछ पर गोदी गई है स्मृतियों की छाप। जहां कलम चली है लगता है समय जिंदा है। बाकी की तारीखें क्या खाली निकल गई हैं ? सादे पन्नों में क्या है ? क्या वे कबीर की चादर हैं - ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया। सच में या वे कबीर को पढ़ कर किये गए स्वांग हैं। क्या समय सचमुच इतना साफ और सुच्चा है। या किसी आतंक, भय, उलझन में बुझी हुई आवाज है इनमें.........
ाच्छी लगी रचना। आभार।
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