Sunday, March 23, 2008

अलाली में रंग गुलाल

साल की शुरुआत में ही किसी दोस्त ने नववर्ष की शुभमानाओं के साथ वर्ष में आने वाले तमाम मौकों, तीज, त्यो‍हारों की शुभमनाएं भी जोड़ दी थीं। पता नहीं किस मौके पर किस हालत में रहें शुभकामना पठा पाएं या नहीं। इसलिए एकमुश्त ही ले लो भैया सारी की सारी। याद कर लेना जन्म दिन, शादी की वर्षगांठ और बच्चे का जन्मदिन भी जोड़ दिया है। और अन्य मौके जो मेरी जानकानी में रह गये हैं उनके लिए खाली स्थान छोड़कर ...... की शुमकामनाएं लिख दिया है। ...कौन रोज रोज की झंझट पाले..

कमाल का आइडिया है न। एक बार में ही सबकी छुट्टी । ड्राफ्ट बनाकर रखने की जहमत भी नहीं कि पता करो कि पिछले मौके पर क्‍या लिखा था। नहीं तो लोग मानेंगे कि अब रचनात्‍मकता बची ही नहीं। वही यांत्रिक शब्‍दावली ....

इस बार होली पर सुबह से ही दोस्तों, शुभचिंतकों और विद्यार्थियों के शुभकामना संदेश आने लगे तो एकबारगी दिल हुआ कि सबको जवाब तो दे ही देना चाहिए। पीआर किया नहीं तो पीआर खराब भी तो न करें। इतना लिखने में कितना समय लगता है कि .... आपको भी होली मुबारक। जीवन के सभी रंगों को स्वीकारें आदि आदि। कुछ लोगों ने बड़ी जतन से रंग और गुझिया मिलाकर संदेश भेजा था। दिल तो यह भी किया कि इन्हीं में से किसी एक बढि़या संदेश कॉपी करके सबको पठा दूं। मोबाइल में मास मेलिंग की सुविधा है। यही सुविधा ई मेल मे भी है – एक संदेश लिखा, कॉमन सा संबोधन दिया और सबके पते चिपका दिए। निश्चिंत, कोई बुरा नहीं मानता और होली पर तो वैसे भी बुरा मानना मना है.............

लेकिन इतना भी नहीं किया गया। न ऐसा न सोचें की तिब्बितियों के समर्थन में या इराक की बीती बरसी से परेशान हूं। या फिलीस्तीन‍ या किसानों की आत्मसहत्याओं से मन कसैला है। नन्दीलग्राम का संग्राम भी भूल चुका हू। कश्मीर अब उतना दुखी नहीं करता। गैर हिन्दी प्रदेशों में हिंदीवासियों उर्फ बिहारियों की हत्याओं और अपमानों के प्रति भी खाल मोटी हो गयी है। ............. ना कोई ठोस कारण नहीं है अगर होगा भी तो पहचान नहीं पा रहा हूं। उत्‍सव के माहौल में क्या सियापा करना...यह सब तो अपने समय और समाज का स्‍थाई फीचर हो गया है इनके लिए दुख जताने और संवेदना प्रकट करने वाले भी अब यांत्रिक माने जाने लगे हैं.......
मैंने यह मान लिया कि हवा में जब इतनी शुभकामनाएं गूंज रही हैं, इतने इलेक्ट्रानिक संदेश आ जा रहे हैं तो मुझे अलग से कोशिश करने की क्‍या जरूरत है। सब ओर से शुभकामनाएं छलक रही हैं तो मेरे संदेश भेजने न भेजने से कितन फर्क पड़ेगा इसलिए मैंने यह मान लिया कि सभी संदेशों में मेरा भी कुछ हिस्सा है। जब भी कोई संदेश बना, पठा या पढ़ रहा होगा उस समय मैं उसके आनंद, खुशी में शामिल हूं।
अगर आप में से किसी को मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो कृपया अन्यथा न लें। आप सबकी शुभकामनाओं में मैं खुद को शामिल महसूस करता हूं। इन दिनों शुभकामनाओं में ही डूब, उतरा और तैर रहा हूं। यह बात अलग है कि उनमें मुझे औपचारिकता, गैररचनात्मकता और बासीपन लग रहा है। ...तो लगे यह मेरी समस्‍या है आपके रंग में भंग क्‍यूं पड़े।
अगली बार से मैं भी तैयार रहूंगा। बढि़या संदेश बन सकेगा, कुछ रंगों की छपाछप से उकेर सकूंगा शुभकामना के बराबर तो आपको निराश नहीं करुंगा। इस बार शुभकामना कार्ड की दूकानों पर नहीं जा सका और न ही इलेक्ट्राकनिक संदेशोंवाली मुफतिया दूकानों की खाक छानी। कहा जाता है न कि अच्छा चुनना भी अच्छा लिखने से कम नहीं होता। हां, यह सब कुछ पढ़ा है, पता है।
बस इस बार की अलाली के लिए क्षमा करें।

1 comment:

  1. बढिया कहनी साहेब. कभी कभार बिना शुभकामना वाला संदेश एन्हूं पठा दिहीं. आच्छा लागी.
    बढिया लिखनी. रउआ जइसन संदेश के जिक्र शुरू में कइले बानि, हमरो भिरी केकरो आइल रहे ओसनके.

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