Wednesday, November 26, 2008

कक्षा के स्‍थाई भाव

हरेक इलाके के कुछ स्‍थाई भाव होते हैं जो माकूल समय पाकर प्रकट होते रहते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी कुछ इसी तरह के भाव हैं जैसे गुरु गोविंद ....। अब गुरु अंधकार से प्रकाश की ओर ले जा रहा है या प्रकाश पर परदा डाल रहा है इसका मूल्‍यांकन समय के साथ होता रहता है लेकिन वह सामने पड़ जाए तो पूर्वोक्‍त दोहा जरूर दुहराया जाता है। शिक्षक दिवस पर तो उसके बिना भाषण ही नहीं शुरू होता।
कुछ वर्ष पहले एक छात्र ने ऐसे ही एक दिवस पर गुरु और शिक्षक को अलगाकर देखने की बात कही थी। उसने बड़ी रोचक परिभाषा दी जीवन के दो स्‍तर हैं एक शरीर और दूसरा आत्‍मा... उसकी व्‍याख्‍या तनिक लंबी थी, निष्‍कर्ष यह था कि जो शरीर पालने की विद्या सिखाता है वह शिक्षक है और जो आत्मिक उन्‍नति अर्थात आध्‍यात्मिक विकास की राह दिखाता है वह गुरु है। अन्‍यार्थ न हो इसलिए उसने अंत में यह जरूर जोड़ दिया कि शरीर के बिना आत्‍मा की कल्‍पना नहीं की जा सकती इसलिए यह संसारी शिक्षक भी गुरु तुल्‍य है।
शिक्षक और गुरू अथवा शिक्षक या गुरू की इस तरह की कई सनातन छवियां हैं तो ताजा समय से बेमेल होने लगी हैं। एक धारणा यह भी है कि विद्या गुरू कि जबान पर होती है। यानी वह विद्याओं को इतना घोंट चुका होता है कि उन पर चर्चा करते वक्‍त किसी सहायक सामग्री की आवश्‍यकता नहीं पड़ती। बस आप विषय का नाम लीजिये और गुरुजी शुरू। हालांकि ऐसी महान विभूतियों का धरती पर अकाल नहीं पड़ा है लेकिन छात्रों से संवाद के तरीके और तकनीक में समय के साथ बदलाव भी आया है।
कक्षा का स्‍वरूप बदलने लगा है चॉक और बोर्ड की जगह ओवरहेड प्रोजेक्‍टर और अन्‍य कंप्‍यूटर सहायक संसाधनों का जमाना है ऐसे में गुरु की ईश्‍वरीय छवि संकट में आ गयी लगती है। क्‍योंकि वह इस नश्‍वर संसार से सहायक सामग्री का इस्‍तेमाल करने लगा है। इस दोष ने उसे ईश्‍वर की अपेक्षा अपने बीच का सामान्‍य आदमी बना दिया है। यह बात दीगर है कि आधुनिक शिक्षा शास्‍त्र उससे ऐसा ही होने की उम्‍मीद करता है ताकि छात्र उससे संवाद कर सकें। लेकिन उन स्‍थाई भावों और सनातन छवियों का क्‍या करें जो अपनी जमीन छोड़ने को ही तैयार नहीं हैं ...

3 comments:

  1. लाल बहादुर जी,
    गुरू और शिक्षक को लेकर मान्यताएं चाहे जो भी हों लेकिन समय के साथ उनमें बदलाव आया है और वो कई मायनों में जरूरी भी है। पहले गुरू में श्रद्धा होती थी, फिर छात्र शिक्षक का आदर करने लगे और अब... श्रद्धा भी कम हुई है और आदर भी। बहरहाल, मेट्रो कल्चर में शिक्षक और छात्रों का दोस्ताना जरूर बढ़ गया है... शायद ये वक्त की जरूरत भी है।

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  2. पशुपति, मैंने तुम्‍हारी बात ही कहने की कोशिश की है। कहां हो आजकल, क्‍या हो रहा है।

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  3. भैया प्राईमरी का मास्टर तो कब से उन छवियों से बाहर लाकर पटक दिया गया है | हम तो कब से बदलने को तैयार हैं ........बकिया तो सब कहानी है | आप की बात अच्छी लगी | आगे भी आता रहूँगा !

    प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
    प्राइमरी का मास्टर
    फतेहपुर

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