कक्षा की अपनी गतिकी होती है। इसमें कक्षा में उपस्थित विद्यार्थियों की पृष्ठभूमि, उनके आपसी रिश्ते , शिक्षक से उनके संबंध आदि महत्वपूर्ण कारक होते हैं। यहां हम कुछ सामान्य प्रवृत्तियों पर चर्चा करेंगे जो प्राइमरी से पीजी तक हर जगह दिखायी देती है। हर कक्षा में पांच से दस फीसदी चमकती प्रतिभा वाले या मुखर विद्यार्थी होते हैं। वे शिक्षक की हर गतिविधि पर न केवल प्रतिक्रिया देते हैं बल्कि सारी गतिविधि अपने आस-पास सीमित कर लेना चाहते हैं। कहा जा सकता है कि अपने बीच ही शिक्षक को अटकाए रखते हैं। कालक्रम में उनकी गतिशीलता कक्षा पर इस कदर हावी होती है कि वे ड्राइविंग सीट पर होते हैं जहां चाहते हैं वहां कक्षा को ले जाते हैं।
लेकिन इनके ठीक पीछे दूसरा समूह होता है। जो मुखर तो नहीं होता लेकिन इस तरह से मुखर विद्यार्थियों के छा जाने से आक्रोश में रहता है। सीधे तो नहीं लेकिन गाहे बगाहे ऐसे मौके की ताक में रहता है जब अपनी शिकायत दर्ज करायी जा सके। कभी-कभार वह सक्रिय हो भी जाता है लेकिन इसमें कोई निरंतरता नहीं रहती। बल्कि उसे अपनी सक्रियता पर पूरा भरोसा नहीं होता। उनको यह भी लगता रहता है कि बाजी हाथ से जा चुकी है ऐसा करके भी वे ड्राइविंग सीट पर नहीं आ सकते।
सबसे बड़ी वह संख्या होती है जो एकदम ही निस्प्रीह होती है। कक्षा में अगर हां हो रही है तो हां और ना हो रही है तो ना की पक्षधर। वह इन तमाम गतिविधियों लेन-देन के क्यों में नहीं पड़ना चाहती। जो भी हो रहा है ठीक ही हो रहा होगा। इस श्रेणी को खुद पर बिल्कुल ही भरोसा नहीं होता, भय यह होता है कि अगर हां या ना के पक्ष में अधिक मुखर हुए तो कारण बताना पड़ सकता है और ऐसा मौका अपमानजनक होगा। जो सही या गलत है धीरे-धीरे उसका पता तो चल ही जाएगा।
सबसे अधिक घाटा कक्षा के इस मौन संप्रदाय को ही उठाना पड़ता है। शिक्षाविद ऐसा बताते हैं कि एक शिक्षक के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस संप्रदाय की तत्काल पहचान कर लेने की होती है। और आदर्श यही है कि कक्षा की प्रगति का मानदंड इस पंक्ति में हो रहे विकास को बनाया जाए। सफल शिक्षकों की कहानी के स्रोत इसी कतार में ढूंढे जा सकते हैं।
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