नवाचारी शिक्षा में अब इस बात पर जोर दिया जाता है कि कक्षाओं की बनावट आयताकार नहीं रहनी चाहिए। हम सभी जानते हैं और बचपन से ऐसा ही देखा है कि कक्षाएं आयाताकार होती हैं और एक के पीछे एक कईं पात बनाकर लड़के लड़कियां बैठते हैं। महानगरों के अनुभव को छोड़ दें तो बाकी अधिकांश जगहों पर लड़कियों की पांत अलग ही होती है। महानगर पूर्णत: इस श्रेणीक्रमवाली कक्षा से मुक्त हैं और गांव मे हर जगह बिल्कुल समस्या ही है, यहां इस तरह के साधारणीकरण का ऐसा कोई इरादा नहीं है।
सत्र शुरू होने के एकाध दिन के बाद हर कक्षा में सबकी जगह तय हो जाती है कि कौन कहां बैठेगा। कई बार इतनी ज्यादा तय हो जाती है कि उसपर जूतमपैजार तक हो जाती है। जिन बच्चों की उंचाई कम है, जो कम सुनते हैं या जिन्हें दूर से दिखाई नहीं देता, ऐसी किसी भी समस्या के प्रति इन कक्षाओं में कोई संवेदनशीलता नहीं होती। हम सभी जानते हैं कि गांव की पृष्ठभूमि में हर गांव में मिडिल, हाईस्कूल या कॉलिज नहीं होता। ऐसे में एक मोहल्ले के बच्चों को किसी और मोहल्ला या फिर एक गांव या कस्बे में पढ़ाई के लिए जाना ही पड़ता है। ऐसे में अक्सर मोहल्ला, गांव, जाति के आधार पर पांत बनने लगती है। जाहिर है इस संदर्भ में स्थानीय बच्चों की तूती बोलती है।
मेरी कक्षा में भी पहले दिन कुछ उसी तरह की पांत बन गई। लड़कियां साफ दिख जाती हैं इसलिए पहला विभाजन यही था। पत्रकारिता करने के आकांक्षी लोगों को इस तरह बैठे देखकर यही लगा कि ऐसे रुढि़बद्ध लोग कहां जायेंगे। पहली बहस यहीं शुरू हुई। बहस का नतीजा सकारात्मक रहा और अब यह पांत नहीं रही । लेकिन दूसरे बंटवारे अब नहीं हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता ।
कक्षा में सभी विद्यार्थी शिक्षक से समान दूरी पर रहें, सब पर बराबर नजर हो, सबतक बराबर आवाज पहुंचे, सभी बराबरी से अपनी बात कह पाएं, शायद कक्षा का गोलाकार या अर्द्धवृताकार ढांचा इसमें मददगार हो सकेगा।
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