निलय उपाध्याय के दूसरे संग्रह कटौती में एक कविता है जोकर। तकरीबन दस साल पहले लिखी गयी इस कविता की सामयिकता चूकी नहीं है अभी। हमारे समय और सत्ता के अंदाज का सटीक बयान है यह कविता। बाकी आप फैसला करेंगे। पेश है कविता
जोकर
सबसे पहले किसे जलील करते हैं जोकर ?
खुद को
उसके बाद किसको जलील करते हैं?
समाजियों और नर्तकों को
और उसके बाद ?
उसके बाद
बहुत आक्रामक हो जाती है जोकर मुद्रा
वे हंसते हुए उतार लेते हैं
देवताओं के कपड़े
जो जानते हैं अश्लीलता की ताकत
और समाज में
उसे सिद्ध करने की कला
सिर्फ जोकर नहीं होते
बहुत अच्छा है भाई. शुक्रिया
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