राष्ट्रवाद एक छाता है
किल कमानियों पर कसा
आंधी और बूंदों से थरथराता
कई बरसातों तक चल जाती है
उसकी यह संरचना
एक नहीं कई जमातों को बचाती या कि
वंचित रखती नैसर्गिक बूंदाबांदी से
सवाल तब उठता है जब बरसात न हो
और धूप नरम हो ----
निशांत, दिल्ली २००३
रास्ट्रवाद संकट-काल की उपज
ReplyDeleteहोता है | अपने छाते के रूपक में
बढ़िया कोशिश की है |
धन्यवाद्...