मित्रों आपके सुझाव के लिए धन्यवाद। बशीर बद्र साहब का नाम न दे पाना ब्लॉग पर आने के अतिउत्साह और ब्लॉगिंग की तकनीकी अज्ञानता के कारण ही हुआ। इस माध्यम मे उतरने और तकनीकी सहयोग के लिए अविनाश को साधुवाद। और आप सभी को भी जिन्होंने इस भयानक भूल की तरफ ईशारा किया।
कोई हाथ्ा भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिजाज का शहर है जरा फासले से मिला करो। बशीर बद्र
क्या बात है।
ReplyDeletelekin ye sher ulta ho gaya hai... pahli line doosrii kar dein aur doosrii pahlii...
ReplyDeleteअविनाश की बात सही है.. और मेरे खयाल से ये जनाब बशीर बद्र साहब का शएर है..आप उन्हे बराबर सम्मान देते हुये कृपया उनका नाम दे दें.. मेहरबानी होगी..
ReplyDeleteऔर आपका स्वागत है लालबहादुर जी.. भोजपुरी फ़िल्मों के बारे में जो आप लिख रहे हैं.. वो सराहनीय है..
बशीर साहब ने ये शअर तो मेरठ के लिये कहा होगा. दिल्ली के लिये तो हमारे ये शब्द हैं.
ReplyDeleteये रंग भरकर प्यार के, बैठी है बांह पसार के
ये दोस्ती का शहर है, यहां पास आके मिला करो.
मुआफ़ी चाहता हूं लेकिन देर आए दुरुस्त आए वाले अंदाज़ में आपका स्वागत यहां
ReplyDeleteभोजपुरी फ़िल्मों पर आपका लिखा पढ़कर अच्छा लगा।
शुभकामनाएं