Wednesday, May 2, 2007

डॉ देव वाराणसी में रहते हैं। साहित्‍य की विभिन्‍न विधाओं में दखल रखते हैं। हमलोगों के लिए उनके गीत काफी महतवपूर्ण रहे हैं। खास तौर से यह गीत जिससे नुक्‍कड़ नाटकों के लिए मजमा जमाया जाता था। प्रस्‍तुत है उनका गीत......
आज नहीं तो कल चूमेगी पांव तेरे मंजिल
चलते जा ..चलते जा...

माना अनजाने सपनों का शहर हुआ जीवन
तूफानों के बीच भटकती लहर हुआ जीवन
मानो कहर हुआ जीवन.. मानो कहर हुआ जीवन..
चलते जा.. चलते जा...
कदम-कदम पर अंगारे हैं यहां जलेंगे पांव
दूर नहीं है अब पास है अपने अरमानों के गांव
तुम्‍हारे छाले देंगे छांव-तुम्‍हारे छाले देंगे छांव
चलते जा ... चलते जा....
आज नहीं तो कल ....

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