Thursday, May 17, 2007

प्रतिध्‍वनि

भाई परमजीत जी ! देश और समाज के प्रति आपकी भावनाओं का आदर करते हुए यह कहना चाहूंगा कि आप विक्रमजी के लेख के मर्म से चूक गए। इसमें कही नहीं कहा गया है कि कलाकारों को देश और समाज को गाली देने लगना चाहिए। लेकिन यह ठेका किसी व्‍यक्ति या कुछ शोहदों को क्‍यों मिले कि वह तय करें कि देश के लिए क्‍या ठीक है और समाज को क्‍या करना चाहिए। यहं बात किसी पेंटिंग तक सीमित तक नहीं है यह उस प्रवृति को रेखांकित करती है जो हमें यथास्थिति में जकड़े रहना चाहती है। कल्‍पना और कला ही वह ताकत है जो हमें इन घेरों से बाहर निकालने में मदद करती है और अगर वह मनुष्‍य के पास नहीं होती तो शायद हम आज भी कंदराओं और गुफाओं में रह रहे होते। आमीन
भाई लेख तो बहुत अच्छा है लेकिन क्या कलाकार का कोई कर्तव्य नही होता अपनें देश के प्रति? क्या उसे यह ध्यान नही रखना चाहिए कि जो वह कला प्रदर्शित कर रहा है उस से देश मे रहने वालो की भावनाएं तो कही आहत नही होगी? सच्चा कलाकार सत्य का दर्शन तो कराता है लेकिन उसे भी अपनी कला प्रदर्शित करते समय इस मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए।
परमजीत बाली

No comments:

Post a Comment