Sunday, May 27, 2007

अभिव्‍यक्ति के बहाने

काफी दिन पहले अपूर्वानंद ने अपने कॉलम में 'कहां हैं हुसेन' शीर्षक से लेख लिखा। उसके कुछ दिनों बाद ही चंद्रमोहन का मामला आया और फिर इस सूची में नामवर सिंह भी शामिल हो गए। पूरा पखवाड़ा अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता पर हो रहे हमले और आनेवाले समय में उसके बढ़ते हुए खतरे के प्रति सावधान करते, सक्रिय होने आदि मंतव्‍यों वाली चर्चाओं में बीता। परंतु न तो चंद्रमोहन का वह विवादित चित्र किसी ने छापा और ना ही नामवर सिंह द्वारा दिया गया व्‍याख्‍यान। मेरे खयाल से यह मामला जितनी चर्चा में आया है उसमें बहुत से पाठकों को जानने की इच्‍छा हुई होगी कि वह चित्र क्‍या है या फिर उस व्‍याख्‍यान का संदर्भ क्‍या है। संदर्भ के बिना किसी एक वाक्‍य या किसी एक टुकड़े को लेकर हायतौबा से अफवाह जरूर बढ़ती है, जूतमपैजार हो सकती है, सृजनात्‍मक कुछ नहीं होता। (अगर किसी की जानकारी में कहीं यह आया हो तो मेरी अज्ञानता है, कृपया उपलब्‍ध कराएं।)
मुझे यह लगता है कि ऐसे मौकों पर ही कला के निहितार्थों की चर्चा भी की जा सकती है। अशोक वाजपेयी ने अपने लेख में कहा कि 'कला सिर्फ अमिधा नहीं है' लेकिन यह एक वक्‍तव्‍य भर ही रहा, बात इससे आगे भी होनी चाहिए। कला के जिस अमिधात्‍मक रूप को लेकर इतना बवेला मचा हुआ है उसमें ही यह मौका है कि कला की विभिन्‍न परतों को पाठकों और दर्शकों के बीच ले जाया जाए। अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता वाली बात उस पर बहस को महत्‍व कहीं से कम नहीं है, ना ही इस मुद्दे पर धरना प्रदर्शन को कहीं से कम आंका जा रहा हैलेकिन जब तक कला और अभिव्‍यक्ति की सीमाओं और बारीकियों पर इन ज्‍वलंत उदाहरणों के जरिए बात नहीं होगी, यह संकट कहीं से कम नहीं होगा। ऐसा लगता है कि कला और साहित्‍य के प्रति निरक्षरता निरंतर बढ़ती जा रही है। ऐसे में यह बात करना जरूरी लगता है कि हुसेन या चंद्रमोहन या कि नामवर सिंह जो कह या रच रहे हैं उसका निहितार्थ क्‍या है वे वैसा क्‍यों रच और रंग रहे हैं....। जिस बड़े पैमाने पर मीडिया की पहुंच लोक में बनी है यह मौके हैं जब कला के विविध पहलुओं पर भी चर्चा होनी चाहिए, व्‍याख्‍याएं आमंत्रित की जानी चाहिए।
इस बीच पंजाब में डेरा सच्‍चा सौदा के मुखिया द्वारा गुरु गोविंद सिंह का स्‍वांग रचने के लेकर भी मीडिया रंगा रहा। बाकी खबरें संपादकीय पन्‍नों पर सिमट गयीं लेकिन डेरा सच्‍चा सौदा का मामला सुर्खियों में बना हुआ है। आज के सहारा में विभांशु दिव्‍याल ने अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के नजरिए से ही सवाल उठाया है। उस नजरिए से इस प्रसंग को देखें तो पहली नजर में डेरा प्रमुख ने गुरु का स्‍वांग भर किया है, परंतु इस मसले पर कहीं भी कोई भी इसका समर्थन करता नहीं दिखता। क्‍या उनको इस अंदाज में अभिव्‍यक्ति की छूट मिल सकती है।
कोशिश होगी विभांशु जी का वह लेख संगत में उपलब्‍ध कराया जाए।

1 comment:

  1. आप सही कह रहे हैं।यह एक गंभीर विषय है।

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